Vijaya Kandpal's Hindi version/translation of my poem 'A Country of My Own'

स्वदेश

मैंने नापा है तुम्हारी सुडौलता को
कभी टकटकी बांधकर कभी एक दृष्टी से यूँ ही
हर उभार और आलेख को
चाहे वो पहाड़ हों या पठार
मैंने जीते हैं

तुम्हारे क्षितिज का परागमन किया है मैंने, एक झपक में
अधीन कर चलाता हुआ चारों दिशाओं को
चौकड़ियाँ भरता हुआ मैं तुम्हारे हरे अस्तबलों में

पार किया है मैंने तुम्हारी नदियों को
उस पुराने पशु की पीठ पर
और गाँव देवियों को तुम्हारे नाम की महत्ता और उदगम के रहस्य बताये हैं
स्मृति भरी है मेरी तुम्हारी लोक एवं पौराणिक कथाओं से
जिन्होंने मिथकीय बनाया है प्रेम प्रसंगों और जीवनियों को
तुम्हारी पीढ़ियों की, जैसे की वे हज़ारों वर्षों पहले लिखी गयी हों

स्वदेश, तुम्हारे पुनर्जागरण और स्वर्ण युग को रंगीन बनाने के लिए
और अदितीय करने के लिए ही
मैंने अब तक अपनी श्वाशों को चलायमान रखा है
ताकि, तुम्हारा इतिहास सुना जाये
मैंने मिथ्या पूर्ण व्यक्तव्य दियें हैं,
अपने ही लोगों के मध्य
जो खोते जा रहे हैं
अपनी जिव्हा का नमक
और अपनी विरासत

तुम मेरी पकड़ में हों कोबोलन (क्षेत्र पंगासिनान के रहिवासी)
मेरी कल्पना के भवन में
मेरे स्वदेश हों तुम
यहीं मेरे हृदय क्षेत्र में
जब स्वर धड़कते हैं जैसे की जंगली कबूतरों की श्वास रोक दी गयी हों
तब ये शब्द मद की भाँती बहते हैं
जैसे रक्त बहता है मेरी धमनियों में

पुनः मुझे सुनने दो बांसों से निकले वो गीत
किसी प्रेमी की श्रृंगार से भरी कवितायेँ
हाँ, पुनः सुनने हैं मुझे वे मंत्र और मंत्रध्वानियाँ
और पहाड़ों पर बैठी निस्तभता को भी
उस कालिमा में विलुप्त होंने से पहले
उस भयावह उड़ान को भरने से पहले

उठो कोबोलन और मेरे शब्दों में से बोलो
अपने शब्दों को अधरों से छु कर उन्हें पुनर्जीवित कर दो
तब तक, जब तक तुम्हारे वंशज उन्हें सुन न लें
सुनो उनके अंतर्मन की भाषा
और बोलो
मेरे विलुप्त होने से पहले

A Country of My Own (Manila Times / Sunday Magazine, 13 March 2011)

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